फर्स्ट-जेनरेशन की Honda Activa का इलेक्ट्रिक अवतार – देखें वीडियो

Honda Activa Electric

फर्स्ट जेनरेशन की होंडा एक्टिवा (Honda Activa) के 110सीसी सिंगल-सिलेंडर इंजन को 1kW BLDC इलेक्ट्रिक मोटर के साथ बदला गया है और यह 1.44 kWh लिथियम-आयन बैटरी पैक के साथ जुड़ी है

पुणे के इलेक्ट्रिक व्हीकल एक्सपर्ट हेमांक दाभाडे (Hemank Dabhade) को अपने व्हीकल्स को प्योर इलेक्ट्रिक वर्जन में बदलने के लिए जाना जाता है। उन्होंने पहले डीजल से चलने वाली शेवरले बीट (Chevrolet Beat) को एक इलेक्ट्रिक व्हीलक में बदला था और अब इन्होंने होंडा एक्टिवा (Honda Activa) स्कूटर के पहले जेनरेशन को एक इलेक्ट्रिक स्कूटर में परिवर्तित किया है।

इस वक्त भारतीय बाजार में इलेक्ट्रिक स्कूटरों की एक लंबी सीरीज है। इसके बादजूद भी दाभाडे ने इस स्कूटर को इलेक्ट्रिक स्कूटर में बदलने का फैसला लिया, क्योंकि पेट्रोल से चलने वाले स्कूटरों की तुलना में ज्यादातर इलेक्ट्रिक स्कूटर महंगे होते हैं।

दाभाडे का मानना है कि इलेक्ट्रिक पावरट्रेन की इंटरनल इमिसन इंजन बेहतर टॉर्क डिलीवरी देते हैं और ईवीएस, पेट्रोल या डीजल पावरट्रेन की तुलना में ज्यादा क्षमता वाले होते है। इसलिए उन्होंने स्कूटर को 1 kW BLDC इलेक्ट्रिक मोटर से लैस किया है, जो कि 1.44 kWh लिथियम-आयन बैटरी पैक के साथ जुड़ा है। हालांकि स्कूटर के CVT सिस्टम को बरकरार रखा है।

बैटरी पैक को सीट के नीचे रखा गया है, जिसका अर्थ है कि उन्होंने स्टोरेज के संदर्भ में व्यावहारिकता के साथ थोड़ा समझौता किया है। हालांकि, इसका मतलब यह भी है कि आप अभी भी आसानी से पीछे एक सवारी को बैठाकर ले जा सकते हैं। दाभाडे ने बैटरी पैक को स्कूटर के फुट-बोर्ड पर अगले आईसीई में ईवी के रूप में परिवर्तित करने की भी योजना बनाई है।

इस इलेक्ट्रिक मोटर के साथ स्कूटर 65 किमी प्रति घंटे की मैक्सिमम स्पीड से चल सकता है, जबकि जीरो इमिशन पर स्कूटर में 42 किमी प्रति घंटा का दावा है। हालांकि यह तब संभव है जब सिंगल सवारी हो। डबल सवारी में इसकी स्पीड 35 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है। दाभाडे का दावा है कि स्कूटर को सिर्फ 2.5 घंटे में फुल चार्ज किया जा सकता है।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि लगभग सभी निर्माता आने वाले वर्षों में ईवी को लॉन्च करने की दिशा में काम कर रहे हैं और इलेक्ट्रिक व्हीकल को भविष्य का व्हीकल माना जा रहा है। ईवी को बनाए रखने की लागत कम है और वे प्रकृति को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।